त्रिपुरा के जंगलों में बचपन में बिताए गए समय में जयश्री चक्रवर्ती ने अपने आसपास की प्राकृतिक दुनिया को संवेदना के साथ समझना सीखा. उत्तर-पूर्वी भारत के इस पहाड़ी राज्य की ये यात्राएँ उन्होंने अपने पिता के साथ की थीं, जो एक डॉक्टर होने के साथ-साथ एक उत्साही पर्यावरणवादी भी थे. उनके रचनाकर्म में एक बेचैनी है जो भारतीय शहरों में नष्ट होती और बदलती हुई प्रकृति के प्रति सरोकार से आता है, जहाँ जलाशयों और जलीय क्षेत्रों पर इंसानी दबदबा बढ़ता ही जा रहा है.
उनकी अनेक कलाकृतियों की तरह रूट्स में, बड़ी गहनता के साथ पूर्वी कोलकाता के साल्ट लेक के जलीय इलाक़े में आए बदलावों की बात की गई है. यहाँ किसी समय जलीय जीवन, पौधे, जलीय पक्षी, घोंघे, कीड़े और जंगली फूल हुआ करते थे. अब यह इलाक़ा साल्ट लेक सिटी बन गया है, जिसमें हरियाली की जगह ईंट-गारे के ढाँचों ने ले ली है. रूट्स इसकी तरफ़ इशारा करता है कि अगर ज़िम्मेदारी के साथ प्रकृति के पास लौटा जाए तो साँस लेने के लिए जूझते शहरों को एक नई ऊर्जा और तंदुरुस्ती हासिल हो सकती है.
समय के साथ जो मलबा जमा होता जाता है – जड़ें, पेड़ों के अवशेष, औषधीय गुणों वाले बीज, टहनियाँ, सूखे पत्ते, सूखे फूल, रूई, अंडे के छिलके, और पौधों का रस - चक्रवर्ती काग़ज़ और कपड़े से बनी अपनी इन पर्दानुमा कलाकृतियों को इन्हीं चीज़ों से रचती हैं.