एक जले और राख हो चुके शहर का आसमान से देखा गया नज़ारा, जिसे काले और धूसर रंगों की बारीक़ परतों से रंगा गया है. यह तस्वीर भुलाए नहीं भूलती. पेंटिंग के केंद्र में एक चमकीली लालिमा देखने वालों का ध्यान एक ऑटो रिक्शे की छवि की तरफ़ खींचती है जिसमें आग लगा दी हई है. यह गुजरात क़त्लेआम का एक रूपक है. रंगों के टोन में तीखा अंतर शहर की बेचैन कर देने वाली कहानी पेश करता है, जो हाल के अतीत में सांप्रदायिक अलगाव और हिंसा का गवाह रहा है. कहानी में शहर अहमदाबाद बताया गया है जिसे गांधी अपने पीछे छोड़ गए. साबरमती नदी के तट पर बसे हुए इस शहर में मशहूर गांधी आश्रम भी स्थित है. शेख ने गांधी के संन्यासी जीवन की पहचान बन गईं, दैनिक निजी इस्तेमाल की पाँच चीज़ें अहमदाबाद के केंद्र में अलग-अलग पोलों यानी मुहल्लों में कहीं-कहीं रखी हैं: खड़ाऊँ, जेब घड़ी, थाली, कटोरा और उनका गोल चश्मा (जिसके बारे में गांधी ने कहा था कि उसने उन्हें स्वतंत्र भारत को देखने की नज़र दी थी).
वीरान पड़े पोलों (मुहल्लों) के चलते शहर भुतहा दिखाई देता है, जिसमें अकेली आकृतियाँ किसी तरह रोज़मर्रा के मामूली काम करते हुए जीवन गुज़ार रही हैं. यह शहर क्या वहीं ठहरा हुआ है, या फिर इस उदासी भरे शहर में समझदारी लौट रही है?