शहर के क़िस्से

संकट हिफ़ाज़त मुक्ति

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ध्रुव मलहोत्रा

नोएडा सॉलिलोक्वी । आफ़्टर डार्क ट्रिलजी, 2007-2010 पिगमेंट प्रिंट

ख़ुद कलाकार का कहना है, “रात मुझे बहुत आकर्षित करती है – सन्नाटा, समय का साफ़ एहसास, और अज्ञात मुझे फोटो लेने के लिए बुलाता है. बेचैनी के अहसास और हमेशा सचेत रहने के चलते मैं ऐसे फोटोग्राफ बना पाता हूँ जिन पर यों ध्यान नहीं जाएगा. अपने फोटो में रात को एक रहस्यमय दुनिया के रूप में दिखाने के बजाए, मैं उन चीज़ों को नज़रों के सामने लाना पसंद करता हूँ जो आम तौर पर अंधेरे में और नज़रों से ओझल हैं. ऐसा करने के लिए मैं रंगीन नेगेटिव फ़िल्म को लंबी अवधियों तक एक्सपोज़ करता हूँ, कभी-कभी तो कई घंटों तक.”

ध्रुव मलहोत्रा 2007 से 2010 के बीच नोएडा में रहे और उन्होंने दिल्ली के इस तेज़ी से विकसित होते अर्ध-शहरी, उपनगर के फोटोग्राफ लिए. उनकी रुचि शहरी बनने की कगार पर पड़ी वीरान जगहों में थी, जो एक क़िस्म की सरहद पर थीं और करीब-करीब नज़रों से ओझल थीं.

“जब मैं फोटो लेता, मुझे लोग खुले में सोते हुए मिलते थे. इस बनते या अधबने लैंडस्केप में मौजूद इंसानी छवियाँ दिखाती थीं कि सार्वजनिक जगहों का उपयोग कितने अधिक जटिल तरीके से होता है. कभी-कभी मुझे ऐसी जगहें भी मिलीं जहाँ अस्थायी आयोजन हो रहे होते, और इस तरह किसी जगह के अपना रंग बदलने की इस ख़ासियत ने मुझे आकर्षित किया.”

इन फोटोग्राफों में रात के समय में नोएडा के बाहरी इलाक़े एक अतियथार्थवाद से भरी जगह की तरह दिखाई देते हैं. सोडियम वेपर लाइटों की रोशनी में उगी हुई पेड़ों की परछाइयाँ और बिजली के हाई-टेंशन तार एक आदर्श शहरी नज़ारे का हिस्सा हैं, जिनको देख कर हम अनुभव करते हैं कि शहरी दुनिया किस तरह भुलावों या झाँसों से भरपूर है. इन फोटोग्राफों में एक भी इंसान या दूसरे जीव नहीं हैं. किस तरह एक बेतरतीब रफ़्तार से फैलते जा रहे उपनगर में अधूरे विकास की कहानियों की घुसपैठ है, यह संकलन इसकी एक दास्तान सुनाता है.