कन्वर्जिंग/सेग्रिगेटिंग I, 2008 स्टेपल पिन और गोंद
हमेशा बनती रहने वाली इमारतों और बदलती जगहों वाले महानगर में रहने के अनुभवों ने पूजा इरन्ना की संवेदनाओं को रचने में अहम भूमिका निभाई है. ‘मैं अपना रास्ता खोजने के लिए चलती हूँ, और चलते हुए अपनी जगहें तलाश करते हुए ख़ुद को पाने की कोशिश कर रही हूँ.’
पूजा की कला में श्रम की ख़ूबसूरती और परत लगाने की प्रक्रिया एक केंद्रीय तत्व है. यह संभव है कि जब वे पारदर्शी पन्नों पर अपनी ड्रॉइंग के लिए ब्लॉकों के ग्रिड बना रही होंगी, तो उन्हें अपना नया मटेरियल मिला होगा - स्टेपल पिन. वे स्टेपल पिनों से किस तरह काम कर सकती हैं, यह तय करने में उन्हें डेढ़ साल लगे. उनकी मूर्तिकला अपने आकार और अपने मटेरियल के बिखर जाने की आशंकाओं को बाधा नहीं बनने देती. इससे वे पिरामिड, कुंडलियाँ और छल्लेनुमा ढाँचे बनाती हैं, जिसकी कल्पना करना तक मुश्किल है. क्योंकि वे जिस मटेरियल, स्टेपल पिन, के साथ काम करती हैं वह पहले से बनी-बनाई एक वस्तु है.
समान रूप में दिखने वाले इन ढाँचों में एक तनाव निहित है और वो यह है कि ये हल्की-सी चोट से टूट सकते हैं. ये एक खालीपन को, सांस्कृतिक विविधता को एकसार बनाए जाने की प्रक्रिया को भी दिखाता हैं. कन्वर्जिंग/सेग्रिगेटिंग-1, 2008 में एक इमारत का मॉडल है, जो एक अत्याधुनिक शहर की इकाइयों का प्रतिनिधित्व करता है.