यूटोपिया में मलानी ने पहली बार दो स्क्रीन प्रोजेक्शन का उपयोग किया है, जिसके लिए दो फिल्म प्रोजेक्टरों का उपयोग किया जाता है. यह काम दो विचारों को एक दूसरे के बरअक्स खड़ा करता है: नेहरू काल में आधुनिक अभिजात तबके द्वारा पेश किया गया यूटोपियन शहरपरस्ती और आपातकाल के दमनकारी दौर (1975-77) में इस परियोजना की नाकामी, जो उस समय के झुग्गी बस्ती हटाने के अभियानों में बहुत साफ़ तौर पर सामने आई थी. यह उत्तर-औपनिवेशिक दौर में आधुनिकीकरण की परियोजना की यूटोपियन महत्वाकाँक्षा और इसकी हिंसक अतियों, दोनों की एक साथ कलात्मक आलोचना है. यह बिखरे हुए सपनों और ज़मीन पर उतरी डरावनी हक़ीक़त की तरफ़ इशारा करती है.
ड्रीम हाउसेज़ (1969), एक 8 मिमी का स्टॉप-मोशन रंगीन एनिमेशन है, जिसे यूटोपिया (1976) की बग़ल में दिखाया जाता है. यह 16 मिमी की एक ब्लैक एंड व्हाइट फ़िल्म है और इसी के नाम पर दो स्क्रीनों वाले इस प्रोजेक्शन का शीर्षक रखा गया है. यह फ़िल्म एक कलात्मक प्रयोग का नतीजा है, जो तब शुरू हुआ था, जब मलानी अकबर पदमसी द्वारा शुरू किए गए विज़न एक्सचेंज वर्कशॉप (VIEW) की सदस्य थीं.
बायाँ पैनल तब शूट किया गया था, जब नलिनी बंबई के एक उपनगर में एक मामूली से अपार्टमेंट बिल्डिंग में रहने आईं. इसमें भव्य दक्षिणी बंबई की ओर जाती रेल की पटरियों और झुग्गी बस्ती के बीच खड़ी एक ऊँची इमारत की एक खिड़की से एक युवा महिला को झाँकते हुए दिखाया गया है.
फ़िल्म को रिवर्स करते हुए, उन्होंने पहले के ड्रीम हाउसेज़ की छवियों को इस पर सुपरइम्पोज़ किया है. इसके नतीजे में दिखाई देता है कि सोच में डूबी हुई, कड़वी हक़ीक़त से वाकिफ़ एक युवा महिला तैरते हुए से इमारती ढाँचों से घिरी हुई है और शहरी नज़ारे को देख रही है. फ़िल्म एक बारीक़ डबल एक्सपोज़र पर ख़त्म होती है, जब यह युवा महिला सपनीले बादलों में ‘गायब’ हो जाती है.