भुपेन खखर ने भारत में छोटे शहरों के मध्यवर्ग के ठेठ जीवन को गहरी प्रतिबद्धता के साथ दिखाया. स्थानीय और अंतरंग परिवेश में डूबी हुई शहरी सड़कें खखर के लिए एक समृद्ध स्रोत बन गई थीं, जहाँ से वे अपने किरदार उठाते थे. इन सड़कों के रोज़मर्रा के मामूली काम और शोर और भड़कीलेपन में लोकप्रिय या फिल्मी हसरतें जान डाल देती थीं. खखर की साधारण छवियाँ भारतीय उपनगरीय जीवन के मामूली पहलुओं को सटीक तरीके से दर्ज़ करती हैं, जहाँ तथाकथित ‘छोटे-मोटे धंधों’ में लगे हुए बाल काटने वालों, घड़ीसाज़ों, दर्ज़ियों को हाशिए से उठा कर प्रतिनिधित्व दिया गया है.
पेंटिंग की दाहिनी तरफ़, ऊपर कोने में दो कपड़े लटके हुए हैं, और ये बहुत सहजता से एक दर्ज़ी की दुकान में एक मामूली दिन का नज़ारा खींचते हैं. ये कपड़े एक इंसानी शरीर की अनुपस्थिति के बारे में भी बताते हैं, जो शायद कलाकार की उस सेक्सुअल एजेंसी की तरफ़ एक छुपा हुआ इशारा है, जो अभी ज़ाहिर नहीं हुई थी. पूरी होने के बाद इस कलाकृति को ब्रिटिश कलाकार हॉवर्ड हॉजकिन को उपहार में दिया गया था, जो खखर के दोस्त भी थे. यह पेंटिंग हॉजकिन के निजी संग्रह में थी, जिसे बाद में एक नीलामी में बेच दिया गया.
बाद में, अपनी सेक्सुअलिटी को ज़ाहिर करते हुए, कलाकार ने समलैंगिक समुदायों पर अपना ध्यान केंद्रित किया, जो साझे सरोकारों और अधेड़ उम्र के मर्दों की चाहतों के नतीजे में साथ आए थे. ये वे इंसान थे, जो सामाजिक बंदिशों से अपना मेल नहीं बिठा पाते थे और शहर में छुपी हुई समलैंगिक यौन आकर्षणों की एक दुनिया तलाश करने निकले थे.